MAIN MENU इतिहास मध्यकालीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास विश्व का इतिहास जनरल नॉलेज झारखण्ड

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के आसपास का more info टाल्मी को ‘भूगोल’ (ज्योग्रफिका), प्लिनी की ‘नेचुरल हिस्टोरिका’ (ई. की प्रथम सदी) महत्त्वपूर्ण हैं। प्लिनी की ‘नेचुरल हिस्टोरिका‘ से भारतीय पशु, पेड़-पौधों एवं खनिज पदार्थों की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार एरेलियन के लेख तथा कर्टियस, जस्टिन और स्ट्रैबो के विवरण भी प्राचीन भारत इतिहास के अध्ययन की सामग्रियाँ प्रदान करते हैं। ‘पेरीप्लस आफ द एरिथ्रियन सी’ ग्रंथ में भारतीय बंदरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का विवरण मिलता है।

होयसल राजवंश – होयसल प्राचीन दक्षिण भारत का एक राजवंश था। इसने दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक राज किया। होयसल शासक पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्र वाशिन्दे थे पर उस समय आस पास चल रहे आंतरिक संघर्ष का फायदा उठाकर उन्होने वर्तमान कर्नाटक के लगभग सम्पूर्ण भाग तथा तमिलनाडु के कावेरी नदी की उपजाऊ घाटी वाले हिस्से पर अपना अधिकार जमा लिया। इन्होंने ३१७ वर्ष राज किया। इनकी राजधानी पहले बेलूर थी पर बाद में स्थानांतरित होकर हालेबिदु हो गई।

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चिश्तिया सूफी सम्प्रदाय एवं ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती

पानीपत की पहली लड़ाई (बाबर द्वारा इब्राहिम लोदी की हार)

कलचुरि राजवंश – कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात था। इस वंश की शुरुआत राजा ईश्वरसेन उर्फ महाक्षत्रप ईश्वरदत्त ने की थी।'कलचुरी ' नाम से भारत में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत में जिसे 'चेदी' 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान कर्नाटक के क्षेत्रों पर राज्य किया।

डॉ जय प्रकाश वर्मा, वीर बहादुर सिंह राजकीय महाविद्यालय कम्पियरगंज , गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में एसोसिएट प्रोफेसर- इतिहास के पद पर कार्यरत है। इनका जन्म अम्बेडकरनगर जिले के एक छोटे से गांव कासिमपुर में हुआ था। पूरा जानिये

लॉर्ड रिपन ने वायसराय के रूप में कार्य किया

उत्तर पश्चिमी भारत में ईरानी शासक, डेरियस का प्रवेश

यह सामग्री क्रियेटिव कॉमन्स ऍट्रीब्यूशन/शेयर-अलाइक लाइसेंस के तहत उपलब्ध है;

स्वामी दयानन्द द्वारा स्थापित आर्य समाज

अभिलेखों से विभिन्न कालों की धार्मिक स्थिति का विवरण भी मिलता है। अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि उसके काल में बौद्ध धर्म का विशेष प्रचार था तथा वह स्वयं इसके सिद्धांतों से प्रभावित था। उदयगिरि के गुहालेखों में उड़ीसा में जैनमत के प्रचार का ज्ञान होता है। गुप्तकालीन अभिलेखों से पता चलता है कि गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे तथा उस काल में भागवत धर्म की प्रधानता थी। यह भी पता चलता है कि विभिन्न स्थानों पर सूर्य, शिव, शक्ति, गणेश आदि की पूजा होती थी। अभिलेखों के अध्ययन से धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव का भी परिचय मिलता है। अशोक ने अपने बारहवें शिलालेख में आदेश दिया है कि सब मनुष्य एक दूसरे के धर्म को सुनें और सेवन करें। कभी-कभी अभिलेखों में व्यापारिक विज्ञापन भी मिलता है। मालवा के अभिलेख में वहाँ के तंतुवायों (जुलाहों) के कपड़ों का विज्ञापन इस प्रकार दिया हुआ है-

एक तनशाह जिसके मरने के बाद महिला ने किया उसके शव पर पेशाब

मैसेडोनिया के सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण (हाइडस्पेश की लड़ाई)

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